रामलला को थी बेहद प्रिय थी सरयू नदी, भगवान विष्णु के नेत्रों से हुई थी प्रकट
HARYANATV24: अयोध्या की गाथा सरयू नदी के बिना तो अधूरी है। भगवान श्री राम के जन्म स्थान अयोध्या से बहने वाली हिंदू धर्म में इस नदी का खास महत्व है। आइए जानते हैं सरयू नदी का महत्व....
सरयू नदी में स्नान करना बहुत शुभ माना जाता है। इसका वर्णन रामचरित मानस में भी है। अयोध्या के उत्तर दिशा में उत्तरवाहिनी सरयू नदी बहती है। एक बार भगवान राम ने लक्ष्मण जी से बताया कि सरयू नदी इतनी पावन है कि यहां सभी तीर्थ दर्शन और स्नान के लिए आते हैं।
सरयू नदी में स्नान करने मात्र से सभी तीर्थों में स्थानों को दर्शन करने का पुण्य मिलता है। ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति सरयू नदी में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करता है। उसे सभी तीर्थों के दर्शन करने का फल मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सरयू और शारदा नदी का संगम तो हुआ ही है, सरयू और गंगा का संगम श्री राम के पूर्वज भागीरथ ने करवाया था।
कैसे उत्पन्न हुई सरयू नदी?
पौराणिक कथाओं के हिसाब से जिस तरह गंगा नदी को भागीरथी धरती पर लाए थे। उसी तरह सरयू नदी को भी धरती पर लाया गया था। भगवान विष्णु की मानस पुत्री सरयू नदी को धरती पर लाने का श्रेय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को जाता है।
सरयू नदी को भगवान शिव ने क्यों दिया श्राप?
भगवान राम ने सरयू नदी में ही जल समाधि ली थी। सरयू नदी में ही भगवान राम ने अपनी लीला समाप्त की थी, इस वजह से भगवान भोलेनाथ उनसे बहुत ज्यादा नाराज हो गए थे। उन्होंने सरयू का श्राप दे दिया की तुम्हारा जल मंदिर में चढ़ाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। इसके साथ ही किसी पूजा पाठ में तुम्हारा इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
सरयू घबरा गए और भोलेनाथ के चरणों में पड़कर उससे पूछने लगे कि प्रभु इसमें मेरा क्या दोष है। यह तो विधि का विधान है। इसमें भला मैं क्या कर सकती हूं। माता सरयू के बहुत विनती करने पर भगवान भोलेनाथ ने मां सरयू से कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता, लेकिन बस इतना हो सकता है कि तुम्हारे जल में स्नान करने से लोगों के पाप धुल जाएंगे, पर तुम्हारा जल पूजा में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।