श्री गुरु तेग बहादुर जी ने आगरा में दी थी गिरफ्तारी, गुरु का ताल और माईथान आए कई बार
HARYANATV24: आगरा में सिकंदरा स्थित गुरुद्वारा गुरु का ताल और माईथान स्थित गुरुद्वारा माईथान का इतिहास सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर से भी विशेष रूप से जुड़ा है। हिंद की चादर नाम से प्रसिद्ध गुरु तेगबहादुर ने गुरुद्वारा गुरु ताल में करीब नौ दिन प्रवास किया और इस स्थान से ही मुगलों को अपनी गिरफ्तारी दी थी। उनकी गिरफ्तारी वाले स्थान पर आज गुरुद्वारा मंजी साहिब और नौ दिन प्रवास वाले स्थान पर भोरा साहिब हैं, जहां अखंड दीप आज भी प्रज्वलित हैं।
खूब कत्लेआम कराया
गुरुद्वारा गुरु का ताल के प्रमुख संत बाबा प्रीतम सिंह ने बताया कि मुगल शहंशाह औरंगजेब हिंदुत्व को नष्ट करना चाहता था इसलिए खूब कत्लेआम कराया। हिंदुओं ने गुरु तेगबहादुर सिंह से बचाने की गुहार लगाई, तो उन्होंने कहा था कि उससे बोल दो कि गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम स्वीकार कर लिया, तो हम भी कर लेंगे। इसके बाद औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर पर इस्लाम कबूल करने का भारी दबाव बनाया, लेकिन उन्होंने सिरे से नकार दिया।
इस पर उसने उन्हें पकड़वाने वाले को 500 मोहर इनाम की घोषणा कर दी। गुरु तेग बहादुर अपने साथियों, भाई मती दास, सती दास, गुरुदित्ता, जैता, दयाला और ऊदौ के साथ आनंदपुर साहिब से पटियाला, जींद, रोहतक होते हुए विक्रम संवत 1731 में गुरु का ताल पहुंचे। यहां वह तालाब किनारे रुके।
चरवाहा हसन अली यहां अपनी भेड़-बकरियां चराया करता था। उसकी बेटी की शादी थी, उसने उनसे प्रार्थना की कि आप हिंदुओं के पीर को यदि गिरफ्तारी देनी है तो वह मेरे हाथों दे दें, तो इनाम मुझे मिल जाएगा। यह जानकर गुरु तेग बहादुर ने उसे अपनी अंगूठी (मुंदरी) और दुशाला देकर मिठाई लाने बाजार भेजा। वहां चरवाहे के पास कीमती वस्तुएं देखकर दुकानदार ने मुगल सैनिकों को सूचना दे दी।
मुगल सैनिक ने चरवाहे से पूछा
मुगल सैनिकों ने चरवाहे को पकड़ा पूछा, तो वह उन्हें गुरु तेग बहादुर के पास ले आया और मुगल सैनिकों ने उन्हें पकड़ लिया। इस तरह इनाम उस चरवाहा को मिल गया। उनकी गिरफ्तारी जिस स्थान से हुई, वहां आज गुरुद्वारा मंजी साहिब स्थापित हैं।
दो बार आए माईथान
गुरु तेग बहादुर दो बार गुरुद्वारा माईथान भी पहुंचें, पहली बार वह वहां एक माह तीन दिन तक रुके। इस दौरान माता जस्सी ने उन्हें कपड़े का थान भेंट किया, जिस कारण क्षेत्र का नाम माईथान पड़ा। क्षेत्रीय निवासी बताते हैं कि पहले क्षेत्र का पानी खारा था। गुरु द्वारा बताए स्थान पर जब श्रद्धालुओं ने कुआं खुदवाया, तो वहां मीठा पानी निकला। वह कुआं आज भी वहां हैं।