आखिर क्यों मनाते हैं नाग पंचमी?: 21 अगस्त को है नागों की पूजा का पर्व, नाग प्रतिमा पर हल्दी, चावल और फूल चढ़ाकर करें पूजन
सोमवार, यानि 21 अगस्त को सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी (नाग पंचमी) है, ये नाग देव की पूजा का पर्व है। इस दिन शिव जी के साथ ही नाग देव की विशेष पूजा करनी चाहिए। हर साल नाग पंचमी पर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के ऊपरी तल पर विराजित नागचंद्रेश्वर भगवान का मंदिर खोला जाता है। साल में सिर्फ एक दिन नाग पंचमी पर नागचंद्रेश्वर के दर्शन किए जा सकते हैं।
सांप एक जहरीला जीव है, फिर भी शिव जी ने नाग देव को अपने गले में धारण किया है। इसका संदेश ये है कि हमें सभी जीवों का सम्मान करना चाहिए। सभी जीवों का सृष्टि के संचालन में योगदान रहता है। सांप भी आहार श्रृंखला का मुख्य जीव है।
नाग पंचमी क्यों मनाते हैं?
नाग पंचमी मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। कथा के मुताबिक, महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को राजा बना दिया और खुद स्वर्ग की यात्रा पर निकल गए थे। पांडवों के बाद धरती पर कलियुग का आगमन हो गया था। राजा परीक्षित की मृत्यु नाग देव के डंसने से हुई थी। परीक्षित का पुत्र जनमेजय बड़ा हुआ तो उसने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पृथ्वी के सभी नागों को मारने के लिए नाग दाह यज्ञ किया। इस यज्ञ में पूरी पृथ्वी के नाग आकर जलने लगे। जब ये बात आस्तिक मुनि को मालूम हुई तो वे तुरंत राजा जनमेजय के पास पहुंचे।
आस्तिक मुनि ने राजा जनमेजय को समाझाया और ये यज्ञ रुकवाया। जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन सावन शुक्ल पक्ष की पंचमी थी। उस दिन आस्तिक मुनि के लिए नागों की रक्षा हो गई। इसके बाद से नाग पंचमी पर्व मनाने की शुरूआत हुई।
यज्ञ की आग को ठंडा करने के लिए आस्तिक मुनि ने उसमें दूध डाल दिया था। इस मान्यता की वजह से नाग पंचमी पर नाग देव को दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।
ऐसे कर सकते हैं नाग देव की पूजा
नाग पंचमी पर नाग अनंत, वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, शंखपाल, कालिया, तक्षक का ध्यान करते हुए नाग प्रतिमा की पूजा करनी चाहिए। अगर नागदेव की प्रतिमा न हो तो शिवलिंग पर स्थापित नागदेव की पूजा कर सकते हैं। नागदेव को जल, दूध चढ़ाने के बाद हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़ाएं। धूप-दीप जलाकर पूजा करें। इस दिन शिव जी की भी पूजा जरूर करें।