तापमान बढ़ने से जमीन फैल या सिकुड़ रही, धरती के अंदर भी क्लाइमेट चेंज, ऊंची इमारतों को खतरा, इससे बिल्डिंग की नींव कमजोर होती है
साइंटिस्ट्स का कहना है कि धरती का तापमान तेजी से बढ़ रहा है। इस वजह से अंडरग्राउंड क्लाइमेट चेंज हो रहा है। इसके लिए हमारे सिविल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार नहीं हैं। आसान शब्दों में कहें तो शहरों में बन रहीं बहुमंजिला इमारतें अंडरग्राउंड क्लाइमेट चेंज के हिसाब से डिजाइन नहीं की गई हैं। इमारतों और अंडरग्राउंड ट्रांसपोर्टेशन (भूमिगत परिवहन) से निकलने वाली गर्मी से धरती का तापमान हर 10 साल में 0.1 से 2.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ रहा है। जमीन के गर्म होने से उसका डिफॉर्मेशन (विरूपण) होता है। यानी जमीन या तो फैलने या सिकुड़ने लगती है। इस कारण इमारतों की नींव कमजोर पड़ने लगती है और इमारतों में दरार आ सकती है। इससे इनके तबाह होने का खतरा बढ़ जाता है।
रिसर्चर्स के मुताबिक, बेसमेंट्स, पार्किंग गैरेज, टनल और ट्रेन से लगातार गर्म हवा निकलती रहती है या हीट पैदा होती है।
जमीन के ऊपर और नीचे के तापमान को स्टडी किया गया
रिसर्चर और नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में सिविल एंड एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एलेसेंड्रो रोटा लोरिया ने कहा- वर्तमान समय में तापमान के बढ़ने से जमीन का विरूपण हो रहा है। हमारा एक भी सिविल स्ट्रक्चर या इंफ्रास्ट्रक्चर इस बदलाव के लिए तैयार नहीं है। रिसर्चर लोरिया और उनकी टीम ने जमीन के ऊपर और नीचे के तापमान की स्टडी की। इसके लिए उन्होंने शिकागो शहर को लैब की तरह इस्तेमाल किया। शिकागो के उन इलाकों में सेंसर इंस्टॉल किए, जहां बहुमंजिला इमारतें और अंडरग्राउंड ट्रांसपोर्टेशन हैं। इसी तरह वहां भी सेंसर लगाए गए, जहां ये अंडरग्राउंड ट्रांसपोर्टेशन नहीं था। स्टडी में सामने आया कि जिन इलाकों में बहुमंजिला इमारतें और अंडरग्राउंड ट्रांसपोर्टेशन हैं, वो हीट के लिहाज से कमजोर हैं।
शिकागो में इमारतों के नीचे वाली जमीन 8mm तक सिकुड़ी
स्टडी में ये भी पाया गया कि गर्मी के कारण शहर की जमीन 12 मिलीमीटर तक फैल गई। वहीं, बहुमंजिला इमारतों के नीचे वाली जमीन 8 मिलीमीटर तक सिकुड़ गई। रिसर्चर्स के मुताबिक, ये बदलाव काफी खतरनाक है। साइंटिस्ट्स के मुताबिक, गावों की तुलना में शहर आमतौर पर ज्यादा गर्म होते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि शहरों की इमारतों को बनाने में लगा रॉ मटेरियल सौर उर्जा और हीट को एबजॉर्ब कर लेता है। बाद में इसे वातावरण में रिलीज कर देता है। इस प्रोसेस को सालों तक स्टडी किया गया है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगले दो दशक में तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा। इससे ग्लेशियर भी पिघलेंगे। दुनिया की 20% जनसंख्या कृषि या पीने के लिए ग्लेशियरों से बहने वाले पानी पर निर्भर है। तापमान का बढ़ना मानवजाति के लिए खतरनाक हो सकता है।
ग्लोबल टेम्परेचर बढ़ा, वजह- अल नीनो और CO2
अमेरिका के नेशनल सेंटर्स फॉर एनवायर्नमेंटल प्रेडिक्शन के मुताबिक, एवरेज ग्लोबल टेम्परेचर बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों ने इसकी वजह अल-नीनो और एटमॉसफियर में बढ़ती कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) बताई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ह्यूमन एक्टीविटीज भी तापमान बढ़ने की एक बड़ी वजह है। फॉसिल फ्यूल्स के जलने से हर साल 40 अरब टन CO2 पैदा होती है।
इससे एयर पॉल्यूशन, ग्लोबल वॉर्मिंग यानी वैश्विक तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। वैश्विक स्तर पर एनर्जी के लिए कोयला, क्रू़ड ऑयल और नेचुरल गैस का सबसे ज्यादा उपयोग होता है। दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है।
क्या होता है अल नीनो
अल नीनो एक वेदर ट्रेंड है, जो हर कुछ साल में एक बार होता है। इसमें ईस्ट पैसिफिक ओशन में पानी की ऊपरी परत गर्म हो जाती है। WMO ने बताया कि इस क्षेत्र में फरवरी में औसत तापमान 0.44 डिग्री से बढ़कर जून के मध्य तक 0.9 डिग्री पर आ गया था। ब्रिटानिका के मुताबिक अल-नीनो की पहली रिकॉर्डेड घटना साल 1525 में घटी थी। इसके अलावा 1600 ईस्वी के आसपास पेरू के मछुआरों ने महसूस किया कि समुद्री तट पर असामान्य रूप से पानी गर्म हो रहा है। बाद में रिसर्चर्स ने बताया था कि ऐसा अल-नीनो की वजह से हुआ था। पिछले 65 सालों में 14 बार अल-नीनो प्रशांत महासागर में सक्रिय हुआ है। इनमें 9 बार भारत में बड़े स्तर पर सूखा पड़ा। वहीं, 5 बार सूखा तो पड़ा लेकिन इसका असर हल्का रहा।
कार्बन एमिशन से बढ़ रहा वैश्विक तापमान
हर साल दुनिया भर से 4000 करोड़ टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन (कार्बन एमिशन) होता है। इससे एयर पॉल्यूशन, ग्लोबल वॉर्मिंग यानी वैश्विक तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। वैश्विक स्तर पर एनर्जी के लिए कोयला, क्रू़ड ऑयल और नेचुरल गैस का सबसे ज्यादा उपयोग होता है। दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है। एमिशन को कम करने के लिए हमें कोयले पर निर्भरता कम करनी होगी।
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