BRICS में शामिल होंगे 4 इस्लामिक देश सऊदी के जुड़ने से कितनी बढ़ेगी इसकी ताकत
Haryana tv24- दुनिया के तीसरे ताकतवर आर्थिक संगठन BRICS में 6 नए देशों को शामिल करने की घोषणा होती है। इन 6 में से 4 इस्लामिक देश हैं।
भारत ने भी इन देशों को BRICS संगठन में शामिल करने की सहमति दी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा इन देशों से हमारे ऐतिहासिक संबंध हैं। सऊदी अरब और UAE समेत 6 देशों के संगठन से जुड़ने को इसकी बढ़ती ताकत से जोड़ कर देखा जा रहा है।
क्या सच में ब्रिक्स को इससे मजबूती मिलेगी? भारत और दूसरे सदस्य देशों को इससे कितना लाभ मिलेगा?
अगर BRICS देशों की करेंसी जारी हुई तो क्या अमेरिकी डॉलर का रुतबा कमजोर पड़ जाएगा? आज इन्हीं सवालों के जवाब जानते हैं...
BRICS पर लिखी किताब 'लोकेटिंग ब्रिक्स इन ग्लोबल ऑर्डर' के लेखक प्रोफेसर राजन कुमार के मुताबिक- इस संगठन में अब तक कोई इस्लामिक देश नहीं थे। भारत में इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों की बड़ी आबादी रहती है। ऐसे में इस संगठन में एक तरह का जो असंतुलन था, उसे खत्म करने की कोशिश की गई है। यही वजह है कि 4 इस्लामिक देशों को इस संगठन से जुड़ने के लिए न्यौता भेजने का फैसला किया गया है। इनमें सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), ईरान और मिस्र शामिल हैं।
सऊदी और UAE जैसे देशों के इस संगठन से जुड़ने से BRICS की ताकत दुनिया में इन 3 वजहों से और बढ़ेगी...
1. सऊदी अरब और UAE जैसे देशों में प्रति व्यक्ति आय काफी ज्यादा है। इसके अलावा उनके पास फॉरेन रिजर्व में काफी पैसा भी है। ऐसे में इन देशों के BRICS से जुड़ने पर संगठन को आर्थिक ताकत मिलेगी।
इनके शामिल होने से BRICS के न्यू डेवलपमेंट बैंक को विश्व बैंक और IMF के विकल्प की तरह स्थापित किया जा सकता है। ब्रिक्स सदस्यों का मानना है कि IMF से मिलने वाला कर्ज किसी भी देश के लिए दम घोंटने जैसा होता है।
ब्रिक्स के NDB को ज्यादा फंड की जरूरत है, ताकि वे विकासशील देशों को प्रभावी ढंग से समर्थन दे सकें।
2. सऊदी अरब तेल पर अपनी इकोनॉमी की निर्भरता को कम कर रहा है। फिलहाल उसकी इंवेस्टमेंट कैपेसिटी काफी ज्यादा है। ये देश BRICS संगठन के प्रोजेक्टस में इंवेस्टमेंट करेगा। इससे सभी सदस्य देशों को लाभ होगा।
3. दुनिया में तेल उत्पादन के लिहाज से दो बड़े देश रूस और सऊदी अरब अब BRICS के सदस्य हो जाएंगे।
भारत के लिहाज से देखें तो सऊदी अरब और UAE का BRICS में जुड़ना देश के लिए अच्छी बात है। इसकी वजह ये है कि सऊदी अरब और भारत के बीच अच्छे संबंध हैं। वहीं, UAE की कुल आबादी में तो 30% भारतीय ही हैं।
अब तक दुनिया की कुल GDP में ब्रिक्स देशों की 26% हिस्सेदारी थी। जो अब 6 नए देशों के जुड़ने से 33% के आसपास हो जाएगी। जबकि फिलहाल सबसे ताकतवर आर्थिक संगठन G7 की GDP के मुकाबले 30% है।
इन देशों को शामिल करने से BRICS के सामने तीन बड़ी चुनौती होगी...
1. जब किसी संगठन का विस्तार होता है तो इससे कॉर्डिनेशन में काफी दिक्कत आती है। बेहतर कॉर्डिनेशन के लेवल पर सदस्य देशों को काम करना पड़ सकता है।
2. ईरान और रूस जैसे देशों पर पश्चिमी देशों की काफी ज्यादा पाबंदियां है। ऐसे में इस संगठन के सामने ये चुनौती होगी कि उन पाबंदियों से कैसे डील करें।
3. पहले इस संगठन केवल 2 प्रतिद्वंद्वी देश भारत और चीन थे, अब दो और सऊदी और ईरान शामिल हो जाएंगे। ऐसे में संगठन की वर्किंग पर असर पड़ सकता है।
सऊदी, UAE मिस्र जैसे देशों के BRICS में शामिल होने से क्या अमेरिका और EU पर कोई असर पड़ेगा?
BRICS अमेरिका या यूरोपीय देशों के खिलाफ नहीं बना है। ये संगठन किसी देश या दूसरे संगठन के खिलाफ इसलिए नहीं है क्योंकि ये मिलिट्री अलायंस नहीं है। यह एक पॉलिटिकल और इकोनॉमिक संगठन है। अमेरिका से खुद भारत के रिश्ते काफी अच्छे हैं।
अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने हाल में कहा है कि हम BRICS को एंटी अमेरिका अलायंस के रूप में नहीं देखते हैं। इसकी एक वजह ये है कि हमारे मित्र देश भी इस संगठन के मजबूत सदस्य हैं।
यह जरूर है कि पश्चिमी देशों के दबदबे के खिलाफ BRICS है, लेकिन ये संगठन इंटरनेशनल रूल ऑफ लॉ, इंटरनेशनल ऑर्डर और बड़े अंतराष्ट्रीय संगठनों के बनाए नियमों को मानता है। ये इनके खिलाफ नहीं है।
क्या ब्रिक्स अपनी करेंसी जारी करेगा, अगर ऐसा हुआ तो डॉलर का क्या होगा...
ब्रिक्स समिट 2023 के मेजबान देश साउथ अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने बैठक के आखिरी दिन एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें BRICS करेंसी पर बात करते हुए उन्होंने कहा- सभी देशों के वित्त मंत्रियों और रिजर्व बैंक को कहा गया है कि वो इस पर विचार करें। अब अगले साल इस मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। रामाफोसा की बातों से ये बात साफ हुआ कि भले ही ब्रिक्स करेंसी को लेकर सदस्य देशों में सहमति नहीं है, लेकिन इस पर बहस जारी रहेगी।
ब्रिक्स करेंसी के समर्थन में संगठन के ये देश
1) ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ब्रिक्स करेंसी के मुद्दे पर सबसे ज्यादा बात करते हैं। उनका मानना है कि व्यापार के लिए देशों पर डॉलर को नहीं थोपा जाना चाहिए। ब्रिक्स करेंसी सदस्य देशों के निर्यात का भुगतान करने के ऑप्शन को बढ़ा देगी। जिससे दुनिया के उन लाचार देशों को लाभ मिलेगा जिनके पास डॉलर का बड़ा भंडार नहीं है।
2) रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने समिट के आखिरी दिन अपनी बात कुछ शब्दों में ही पूरी कर दी, लेकिन वो ब्रिक्स करेंसी का जिक्र करना नहीं भूले। इसकी वजह यूक्रेन जंग के चलते रूस पर लगी पाबंदियां हैं। रूस डॉलर का इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। ऐसे में वो ब्रिक्स के उन देशों में शामिल है, जो ब्रिक्स करेंसी का सबसे बड़ा हिमायती है।
भारत और साउथ अफ्रीका का पक्ष- ये दोनों देश मुखर रूप से ब्रिक्स करेंसी के समर्थन में नहीं है। जुलाई में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था- ब्रिक्स करेंसी पर कोई विचार नहीं है। ये दोनों देश ब्रिक्स करेंसी की बजाए सदस्य देशों के बीच नेशनल करेंसी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने पर जोर दे रहे हैं।
चीन- राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने करेंसी को लेकर कोई जिक्र नहीं किया। हालांकि, ये जरूर कहा कि इंटरनेशनल फाइनेंशियल और मोनेटरी सिस्टम में बदलाव लाने की जरूरत है।
BRICS करेंसी से क्या सच में डॉलर को खतरा होगा...
ब्रिक्स करेंसी को लेकर अभी कोई जरूरी डेवलेपमेंट नहीं हुआ है। टाइम्स ऑफ इंडिया कि रिपोर्ट के मुताबिक अगर कभी ब्रिक्स करेंसी आई तो ये दुनिया में डॉलर के रुतबे की नींव को हिला सकती है।
इसकी वजह ब्रिक्स संगठन की मजबूत इकोनॉमी है। संगठन में दो ऐसे देश चीन और भारत शामिल हैं जो दुनिया की टॉप 5 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में हैं। अगर ये डॉलर में ट्रेड घटा देंगे तो इसका सीधा असर इसके रुतबे पर होगा।
संगठन में अब सऊदी अरब शामिल हो रहा है। जो दुनिया के सबसे बड़े तेल निर्यातकों में शामिल है। चीन और भारत तेल को आयात करने में अब तक डॉलर का इस्तेमाल कर रहे थे। वो ब्रिक्स करेंसी का इस्तेमाल करेंगे इससे स्वभाविक है कि डॉलर कमजोर पड़ेगा।