सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता नहीं, जानें अब तक क्या-क्या हुआ?
HARYANATV24: देश में समलैंगिक जोड़ों को आपस में शादी करने की कानूनी मान्यता मिलेगी या नहीं, इसका निर्णय अब संसद करेगी। सुप्रीम कोर्ट में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता के सवाल पर फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि वह इस मामले में कानून नहीं बना सकता, बल्कि सिर्फ इसकी व्याख्या और इन्हें लागू कर सकता है।
इससे पहले समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर मई में 10 दिन की मैराथन सुनवाई हुई थी। 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा था। फैसले के पहले से ही समाज का एक बड़ा वर्ग समलैंगिक शादी के विरोध में खड़ा था। इसके साथ ही केंद्र ने भी इस तरह की शादी पर कड़ा विरोध जताया था।
मलैंगिक विवाह को लेकर अभी क्या हुआ है?
पिछले कुछ समय में देशभर की कई अदालतों में याचिकाएं दायर करके समलैंगिक विवाह को वैधानिक मान्यता देने की मांग की जा रही है। 11 मई को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने ऐसी 20 याचिकाओं की सुनवाई पूरी कर फैसला सुरक्षित रख लिया था। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ में भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति रवींद्र भट, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा शामिल थे।
शीर्ष अदालत के समक्ष याचिकाओं में विशेष विवाह अधिनियम, विदेशी विवाह अधिनियम और हिंदू विवाह अधिनियम सहित विभिन्न अधिनियमों के तहत समान-लिंग विवाह को मान्यता देने की मांग की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को समलैंगिक विवाह को कानूनी तौर पर वैधता देने से इनकार कर दिया है। संविधान पीठ ने 3-2 के बहुमत के फैसले से कहा कि इस तरह की अनुमति सिर्फ कानून के जरिए ही दी जा सकती है और कोर्ट विधायी मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के विरोध में कौन?
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का कई स्तर पर इसका विरोध हो रहा है। केंद्र सरकार से लेकर, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और सामाजिक संगठनों ने इसका विरोध किया है।
केंद्र का रुख क्या है?
केंद्र हमेशा ही समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के खिलाफ रहा है। इसने अपने आवेदन में ये कहा है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का व्यापक असर होगा और सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं पूरे देश की सोच को व्यक्त नहीं करती हैं बल्कि ये शहरी अभिजात वर्ग के विचारों को ही दर्शाती हैं। इसे देश के विभिन्न वर्गों और पूरे देश के नागरिकों के विचार नहीं माने जा सकते।
इनके द्वारा किया गया समर्थन
जहां समाज का एक तबका समलैंगिक जोड़ों की शादी का विरोध कर रहा है तो दूसरी ओर कई संगठन और लोग इसके पक्ष में उतरे हैं। इंडियन साइकियाट्रिक सोसायटी ने कहा कि समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है।
कितने देशों में समलैंगिक विवाह को मंजूरी मिल चुकी है?
दुनिया में अभी 33 ऐसे देश हैं, जहां समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी मिली हुई है। समलैंगिक विवाह को मंजूरी देने वाला सबसे पहला देश नीदरलैंड बना। इसके अलावा ऑस्ट्रिया, ताइवान, कोलंबिया, अमेरिका, ब्राजील, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, क्यूबा, डेनमार्क, स्वीडन, दक्षिण अफ्रीका, माल्टा, फिनलैंड, ब्रिटेन जैसे देशों में भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मंजूरी मिली हुई है।
कितने देशों में समलैंगिकता अवैध है?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, कम से कम पांच अन्य देशों - पाकिस्तान, अफगानिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और मॉरिटानिया में शरिया अदालतों के तहत समलैंगिक संबंधों पर मौत की सजा तक दी जा सकती है। ईरान, सोमालिया और उत्तरी नाइजीरिया के कुछ हिस्सों में भी यही बात लागू होती है।
अब आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने भारत में समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने या नहीं देने का अधिकार देश की संसद को बताया है। बहरहाल संसद में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार है जो लगातार इसका विरोध करत रही है। अगर सरकार के रुख के हिसाब से देखें तो वह देश में समलैंगिक शादियों को वैधानिक नहीं बनाएगी।