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भजनलाल के मुख्यमंत्री बनने की कहानी और उनसे जुड़े किस्से…

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भजनलाल के मुख्यमंत्री

Haryana news: 14 जनवरी 1980, इंदिरा गांधी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनीं। तब हरियाणा में जनता पार्टी की सरकार थी और चौधरी भजनलाल मुख्यमंत्री।

6 दिन बाद यानी, 20 जनवरी को भजनलाल अचानक फूलों का गुलदस्ता लेकर इंदिरा गांधी से मिलने दिल्ली पहुंच गए। दोनों के बीच काफी देर तक बातचीत हुई।

भजनलाल हरियाणा लौट आए। 22 जनवरी 1980, भजनलाल फिर से दिल्ली पहुंचे। इस बार भी इंदिरा से उनकी मुलाकात हुई, लेकिन जब हरियाणा लौटे तो वे जनता पार्टी के नहीं, बल्कि कांग्रेस के मुख्यमंत्री थे।

जनता पार्टी की पूरी सरकार कांग्रेस सरकार में बदल गई। भारत की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ जब पूरी सरकार ने दल-बदल कर लिया।

दरअसल, जनता पार्टी ने सत्ता में आने के बाद कई राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बर्खास्त की थीं।

भजनलाल को इसी बात का डर था कि इंदिरा भी उनकी सरकार बर्खास्त करेंगी।

इसलिए भजनलाल पूरी सरकार के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए और मुख्यमंत्री की कुर्सी बचा ली।

हरियाणा कैडर के IAS ऑफिसर रहे राम वर्मा अपनी किताब ‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ में लिखते हैं- ‘उस दौरान चौधरी भजनलाल एक बड़े सूटकेस के साथ संजय गांधी से मिले थे।

भजनलाल से कहा गया था कि सूटकेस मेनका गांधी की मां के घर पहुंचाना है।

बाद में भजनलाल ने अपने किसी आदमी से कहा कि मुझे मालूम नहीं था कि नेहरू परिवार में भी पैसा चलता है, वर्ना मैं कब का राजपाट ले लेता।’

22 जनवरी 1980 को दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भजनलाल।

22 जनवरी 1980 को दिल्ली में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ भजनलाल। 6 अक्टूबर 1930, संयुक्त पंजाब के बहावलपुर में जन्मे भजनलाल का परिवार बंटवारे के बाद हरियाणा के आदमपुर में आकर बस गया।

बहावलपुर अब पाकिस्तान का हिस्सा है। 1950 में भजनलाल ने कपड़े का बिजनेस शुरू किया, लेकिन इसमें खासा मुनाफा नहीं हुआ। अब वे नए धंधे की तलाश में जुट गए।

50 के दशक में उत्तर भारत की अनाज मंडियों में कमीशन एजेंटों को मुनाफे का 1.5% हिस्सा मिलता था।

कुछ साल भजनलाल ने अनाज मंडी में काम किया। इसके बाद 1965 में वे घी का कारोबार करने लगे।

उनका घी पंजाब में बहुत फेमस हुआ। एक इंटरव्यू में भजनलाल खुद इस बात का जिक्र कर चुके हैं।

अपना कारोबार आगे बढ़ाने के लिए भजनलाल के दिमाग में राजनीति का ख्याल आया।

भजनलाल के विरोधी मानते हैं कि वे राजनीति में इसलिए आए ताकि उनका कारोबार पुलिस की देखरेख में फलता-फूलता रहे।

1960 में भजनलाल ने पहली बार ग्राम पंच का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1961 में ब्लॉक समिति चेयरमैन के चुनाव में बड़े-बड़े धुरंधरों को मात दी। चेयरमैन बनने से भजनलाल दूर-दूर तक मशहूर हो गए।

1967 में भजनलाल ने कांग्रेस पार्टी से विधायक का टिकट मांगना शुरू कर दिया था।

उस समय कांग्रेस के अध्यक्ष एस निजलिंगप्पा थे। उन्होंने भजनलाल के बढ़ते वर्चस्व की वजह से फतेहाबाद सीट से टिकट देने की हामी भर दी, लेकिन भजनलाल आदमपुर सीट के लिए अड़ गए।

भजनलाल की किस्मत ने भी साथ दिया। हुआ यूं कि उसी दौरान आदमपुर से कांग्रेस विधायक हरि सिंह डाबड़ा ने अचानक दल-बदल कर लिया। ऐसे में भजनलाल को टिकट मिलने का रास्ता साफ हो गया। 1968 में वे आदमपुर सीट से जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचे।

1960 के दशक की तस्वीर। तब चौधरी भजनलाल राजनीति में नए थे।

1960 के दशक की तस्वीर। तब चौधरी भजनलाल राजनीति में नए थे।

MLA हॉस्टल के बाहर बंदूक टांगकर पहरा देते थे भजनलाल को कांग्रेस नेता बंसीलाल का करीबी माना जाता था। पॉलिटिकल एनालिस्ट डॉ. सतीश त्यागी बताते हैं- ‘1968 में भजनलाल विधायक बने, तब चौधरी बंसीलाल मुख्यमंत्री थे। कांग्रेस सरकार में भजनलाल को हरियाणा मार्केटिंग बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया। दो साल बाद यानी, 1970 में बंसीलाल ने भजनलाल को कृषि मंत्री बना दिया।

1972 में दोबारा विधायक चुने जाने के बाद चौधरी भजनलाल फिर कृषि मंत्री बने। 7 साल बीत गए, चौधरी भजनलाल ने बंसीलाल का पूरा भरोसा हासिल कर लिया।

भजनलाल की गिनती चौधरी बंसीलाल के करीबी और ताकतवर नेताओं में होने लगी। उस समय भजनलाल MLA हॉस्टल के बाहर दुनाली बंदूक कंधे पर टांगकर पहरा देते थे, ताकि कोई विधायक दल-बदल न कर सके।

इमरजेंसी के बाद 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी। चौधरी भजनलाल कांग्रेस छोड़कर बाबू जगजीवन राम की ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ में शामिल हो गए। आगे चलकर कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी का विलय जनता पार्टी में हो गया।

प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ भजनलाल। मोरारजी देसाई के समर्थन से ही भजनलाल पहली बार सीएम बने थे।

प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के साथ भजनलाल। मोरारजी देसाई के समर्थन से ही भजनलाल पहली बार सीएम बने थे। देवीलाल का तख्तापलट कर पहली बार मुख्यमंत्री बने भजनलाल साल 1977, इमरजेंसी के बाद केंद्र में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री। ये आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार थी। इसमें भारतीय जनसंघ, भारतीय लोकदल के साथ ही कांग्रेस से टूटकर बने दल शामिल थे। हालांकि कुछ दिनों बाद ही जनता पार्टी के अलग-अलग धड़ों के बीच अनबन होने लगी। जनसंघ से आए सांसदों पर दबाव बनाया जाने लगा कि वे या तो जनता पार्टी छोड़ दें या RSS।

इधर, हरियाणा की जनता पार्टी सरकार में भी उथल-पुथल मची थी। मुख्यमंत्री देवीलाल के करीबी ही बगावत पर उतारू थे। इस बीच 19 अप्रैल, 1979 को देवीलाल ने जनसंघ से आए मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया।

6 जून 1979, मुख्यमंत्री देवीलाल हिसार और सिरसा के दौरे पर थे। उन्हें खबर मिली कि उनके चार मंत्रियों ने बगावत कर दी है। डेयरी मंत्री भजनलाल बिश्नोई भी इनमें से एक थे। देवीलाल ने फौरन विधायकों को बचाने की कवायद शुरू कर दी। उन्होंने सिरसा जिले के तेजा खेड़ा में अपने किलेनुमा घर में 42 विधायकों को बंद कर लिया। कहा जाता है कि देवीलाल बंदूक लेकर विधायकों की रखवाली कर रहे थे।

इधर, तख्तापलट के लिए भजनलाल के पास दो विधायक कम पड़ रहे थे। देवीलाल खेमे के दो विधायक उनके घर से बाहर निकले। एक विधायक के घर शादी थी और दूसरे विधायक के चाचा बीमार थे। देवीलाल को लगा कि कुछ गड़बड़ है। वे बिन बुलाए विधायक के घर शादी में पहुंच गए। देवीलाल ने देखा कि भजनलाल वहां पहले से ही मौजूद हैं।

दरअसल, तेजा खेड़ा में बंद विधायकों से मिलने उनकी पत्नियां और परिवार के लोग जाते थे। इनके जरिए ही भजनलाल अपना मैसेज इन विधायकों तक पहुंचाते थे। बाद में दोनों विधायक भजनलाल के खेमे में आ गए।

26 जून 1979, देवीलाल को बहुमत साबित करना था। उन्होंने संख्या बल जुटाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। एक दिन पहले ही देवीलाल ने इस्तीफा दे दिया। इस तरह भजनलाल तख्तापलट कर पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने।

29 जून 1979, पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए चौधरी भजनलाल।

29 जून 1979, पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए चौधरी भजनलाल। भजनलाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, देवीलाल ने राज्यपाल को थप्पड़ मारा -साल 1982... हरियाणा के विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके थे। कांग्रेस को 37 सीटें मिलीं थीं। लोकदल को 33, भाजपा को 6, जगजीवनराम की कांग्रेस को 2 सीटें ही मिलीं। 11 निर्दलीय विधायक चुने गए। यानी, किसी को भी बहुमत हासिल नहीं था।

राज्यपाल तपासे ने लोकदल के नेता चौधरी देवीलाल और भाजपा के नेता मंगलसेन को बुलाया और दो दिन बाद राजभवन में 45 या इससे ज्यादा विधायकों के साथ बहुमत साबित करने को कहा।

इधर, अगले ही दिन राज्यपाल दिल्ली पहुंच गए। उसी दिन दिल्ली के हरियाणा भवन में कांग्रेस नेता भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी।

देवीलाल को पता चला, तो वे आगबबूला हो गए। अगले दिन वे सीधे राजभवन पहुंचे और भजनलाल सरकार को बर्खास्त करने की मांग पर अड़ गए। राज्यपाल तपासे से देवीलाल की बहस हो गई। इसी दौरान गुस्साए देवीलाल ने तपासे की ठुड्डी पकड़ी और उनके गाल पर जोरदार तमाचा जड़ दिया। इस घटना के बाद देवीलाल की देशभर में आलोचना हुई। हालांकि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई।

24 जून 1982 को भजनलाल ने 57 विधायकों के साथ बहुमत साबित कर दिया। चुनावी नतीजों के 30 दिन बाद ही भजनलाल ने विरोधी पार्टी के 20 विधायक अपने पाले में कर लिए थे। इनमें कुछ लोकदल और कुछ निर्दलीय विधायक थे। नियम के मुताबिक, 9 मंत्री बनाए जा सकते थे। भजनलाल ने 5 निर्दलीय विधायकों समेत कुल 19 लोगों को मंत्री बनाया था।

80 के दशक की तस्वीर। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ चौधरी भजनलाल (दाएं से दूसरे नंबर पर)।

80 के दशक की तस्वीर। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ चौधरी भजनलाल (दाएं से दूसरे नंबर पर)।

नेताओं को खुश करने के लिए घी के पीपे भिजवाते थे भजनलाल

हरियाणा में किसी को घी लाकर देना अच्छे और घनिष्ठ रिश्ते की निशानी माना जाता है। कहा जाता है कि एक बार किसी का घी खा लिया तो आप पर उसके घी का कर्ज चढ़ गया। एक रिपोर्ट के मुताबिक 1977 में जनता पार्टी में शामिल होने के लिए भजनलाल ने मोरारजी देसाई के घर 18 किलो घी के तीन पीपे भिजवाए थे।

कांग्रेस में आने के लिए भी भजनलाल ने वैसी ही ट्रिक अपनाई थी। उन्होंने संजय गांधी के बेटे वरुण गांधी के लिए सोने की परत चढ़ा ऊंट भिजवाया था।

जलेबी नहीं लाने पर डिप्टी कमिश्नर का तबादला किया, बाद में उसी डिप्टी कमिश्नर से चुनाव हार गए

23 मई 1985, सिरसा के सर्किट हाउस में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आगमन की तैयारियां पूरी हो चुकी थीं। दूसरी तरफ तत्कालीन डिप्टी कमीश्नर ईश्वर दयाल स्वामी के पीए आदमपुर बाजार में भूरा हलवाई की दुकान पर जलेबी लेने गए हुए थे। उन्होंने हलवाई से जलेबी पैक करने को कहा तो इस पर हलवाई ने उन्हें बर्फी की राय दे दी। वे हलवाई की बात मानकर बर्फी ले आए।

इधर, राजीव गांधी भी सर्किट हाउस पहुंच चुके थे। सीएम भजनलाल उनकी छोटी-छोटी चीजों का ख्याल रख रहे थे। लंच का समय हो गया। चौधरी भजनलाल और राजीव गांधी खाना खाने बैठ गए। खाने के बाद राजीव गांधी ने कहा- जलेबी कहां गई। जब डिब्बा खोला गया तो उसमें जलेबी की जगह बर्फी निकली। राजीव गांधी ने कहा- लेकिन मुझे तो जलेबी खानी थी। इसके बाद हंगामा मच गया।

भजनलाल ने आदमपुर से जलेबी लाने के लिए काफिला भेजा, लेकिन राजीव गांधी नहीं रुके और चले गए। इसके बाद भजनलाल गुस्से से लाल थे और उन्होंने डीसी का तबादला कर दिया। 1999 में इन्हीं ईश्वर दयाल स्वामी ने भजनलाल को करनाल लोकसभा सीट से चुनाव हरा दिया।

फरवरी 1986, दिल्ली में एक कार्यक्रम के बाद मुख्यमंत्री भजनलाल।

फरवरी 1986, दिल्ली में एक कार्यक्रम के बाद मुख्यमंत्री भजनलाल।

देवीलाल परिवार में फूट, भजनलाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बने 1987 की बात है। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस बुरी तरह हार गई। उसे सिर्फ 5 सीटें ही मिल सकी थीं। लोकदल के देवीलाल मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनके दोनों बेटों ओमप्रकाश चौटाला और रणजीत चौटाला में मतभेद खुलकर सामने आने लगे।

1989 में देवीलाल डिप्टी पीएम बनकर केंद्र में चले गए और बेटे ओमप्रकाश को हरियाणा का मुख्यमंत्री बना दिया। रोहतक की महम सीट पर उप चुनाव हुआ, जो हिंसा की भेंट चढ़ गया। चौटाला को इस्तीफा देना पड़ा। बाद में दड़बा सीट से चौटाला विधायक बने और फिर मुख्यमंत्री, लेकिन इस फेरबदल से प्रधानमंत्री वीपी सिंह खुश नहीं थे। 1991 में पार्टी में बढ़ते अंतर्कलह की वजह से चौटाला सरकार गिर गई और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

भजनलाल ने इस मौके का फायदा उठाया। इस दौरान वह केंद्र में कृषि मंत्री थे। उन्होंने फौरन अपने पद से इस्तीफा देकर 1991 में आदमपुर सीट से हरियाणा विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। भजनलाल तीसरी बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने।

चुनाव भजनलाल के नाम पर लड़ा गया, लेकिन मुख्यमंत्री बन गए भूपेंद्र हुड्डा

27 फरवरी 2005, हरियाणा विधानसभा चुनाव के वोट गिने गए। कांग्रेस ने 90 में 67 सीटें जीत लीं। ओमप्रकाश चौटाला की सत्ताधारी पार्टी इनेलो 9 सीटों पर सिमट गई। 9 साल बाद कांग्रेस की वापसी हुई।

अब बारी थी मुख्यमंत्री तय करने की। चार बड़े दावेदार थे- तीन बार मुख्यमंत्री रहे चौधरी भजनलाल, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा, मुख्यमंत्री चौटाला को हराने वाले रणदीप सुरजेवाला और उचाना कलां से विधायक बीरेंद्र सिंह।

साल 2008, चौधरी भजनलाल छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ।

साल 2008, चौधरी भजनलाल छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ।

वरिष्ठ पत्रकार सतीश त्यागी अपनी किताब 'पॉलिटिक्स ऑफ चौधर' में लिखते हैं- ‘1 मार्च, 2005 को CM के नाम पर रायशुमारी के लिए दिल्ली से तीन ऑब्जर्वर- कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी, राजस्थान के पूर्व CM अशोक गहलोत और केंद्रीय मंत्री पीएम सईद हरियाणा पहुंचे।

चंडीगढ़ में बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के विधायकों और प्रदेश के सांसदों से नए मुख्यमंत्री को लेकर वन टु वन सवाल-जवाब हुए। बैठक में भजनलाल के बेटे चंद्रमोहन और कुलदीप भी मौजूद थे। तब चंद्रमोहन विधायक और कुलदीप सांसद थे। बैठक के बाद ऑब्जर्वर्स ने कहा- 'कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी मुख्यमंत्री पर अंतिम फैसला लेंगी।'

अगले दिन यानी, 2 मार्च को सोनिया गांधी को रिपोर्ट सौंपी गई। 3 मार्च को सोनिया और ऑब्जर्वर्स के बीच लंबी बैठक हुई।

4 मार्च 2005, दिल्ली के पार्लियामेंट अनेक्सी में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई गई। कांग्रेस के 67 विधायकों में से 47 बैठक में शामिल हुए। भजनलाल सहित उनके समर्थक 20 विधायक नहीं पहुंचे। 90 मिनट चली बैठक के बाद जर्नादन द्विवेदी ने ऐलान किया- 'कल शाम 5:30 बजे भूपेंद्र हुड्‌डा राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे।’

इस तरह भजनलाल चौथी बार मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए। बाद में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी और 2007 में छोटे बेटे कुलदीप बिश्नोई के साथ मिलकर एक नई पार्टी ‘हरियाणा जनहित कांग्रेस’ यानी, हजकां का गठन किया।

बेटे ने इस्लाम कबूला तो भजनलाल ने संपत्ति से बेदखल किया

2008 की बात है। भजनलाल के बड़े बेटे चंद्रमोहन उस समय हरियाणा के डिप्टी CM थे। इसी दौरान चंद्रमोहन और अनुराधा बाली का अफेयर सामने आया। अनुराधा एक नामी वकील थीं और हरियाणा की असिस्टेंट एडवोकेट जनरल रह चुकी थीं। दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन चंद्रमोहन शादीशुदा थे। जबकि अनुराधा का उनके पति से तलाक हो चुका था।

7 दिसंबर 2008, चंद्रमोहन और अनुराधा दोनों मीडिया के सामने आए। चंद्रमोहन अब चांद मोहम्मद बन चुके थे तो अनुराधा बाली का नाम फिजा हो चुका था। दोनों ने इस्लाम कबूल करके शादी कर ली थी। काफी दिनों तक दोनों की प्रेम कहानी मीडिया में चर्चा बनी रही।

भजनलाल इससे बहुत नाराज हुए और बेटे चंद्रमोहन को अपनी संपत्ति से बेदखल कर दिया। उन्होंने चंद्रमोहन के हिस्से की संपत्ति उनकी पहली पत्नी और बच्चों के नाम कर दी। शुरुआत में तो चंद्रमोहन को इससे खास फर्क नहीं पड़ा। दोनों मीडिया के सामने आते रहे और अपने प्रेम का इजहार करते रहे, लेकिन बाद में चंद्रमोहन पर दबाव बढ़ने लगा।

16 दिसंबर 2008, जगह- दिल्ली का प्रेस क्लब। चंद्रमोहन अपनी पत्नी अनुराधा बाली के साथ।

16 दिसंबर 2008, जगह- दिल्ली का प्रेस क्लब। चंद्रमोहन अपनी पत्नी अनुराधा बाली के साथ।

29 जनवरी 2009 को फिजा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। उसने आरोप लगाया गया कि उसके रिश्तेदार कुलदीप बिश्नोई ने चांद का अपहरण कर लिया है। जब चांद को इस प्रेस कॉन्फ्रेंस के बारे में पता चला तो उन्होंने तुरंत एक बयान जारी किया। चांद ने कहा कि वह लंदन में हैं। उसे अपनी पहली पत्नी सीमा और बच्चों की याद आ रही थी। 14 मार्च 2009 को चांद ने लंदन से फिजा को फोन किया और तीन बार ‘तलाक, तलाक, तलाक’ बोल दिया।

2012 में अनुराधा उर्फ फिजा की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई। वे अपने कमरे में मृत पाई गई थीं। उन दिनों छपी खबरों के मुताबिक ​​फिजा को जब पुलिस ने पाया तो उसकी मौत को कई दिन हो चुके थे। वह दो तकियों के सहारे सिर टिकाए पड़ी थी, उसका शरीर काला पड़ चुका था। उसके चारों ओर ब्लेंडर प्राइड की एक बोतल, सिगरेट का एक पैकेट और पकौड़ों की एक प्लेट फर्श पर बिखरी हुई थी।

2009 में लड़ा आखिरी चुनाव, चौटाला के करीबी को 6 हजार वोट से हराया

2009 में चौधरी भजनलाल ने अपनी नई पार्टी हजकां के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में उनके सामने इनेलो की तरफ से चौटाला परिवार के खास रहे प्रो. संपत सिंह मैदान में थे। भजनलाल ने संपत सिंह को 6 हजार वोटों के मामूली अंतर से हरा दिया।

2009 में ही हरियाणा विधानसभा चुनाव हुए। कांग्रेस ने 90 विधानसभा सीटों में से 40 और इनेलो ने 31 पर जीत दर्ज की। वहीं, 6 सीटें जीतकर हजकां किंगमेकर बनकर उभरी, लेकिन भूपेंद्र हुड्‌डा ने रातों-रात इसके 5 विधायक तोड़ लिए और सरकार बना ली। 3 जून 2011 को भजनलाल का निधन हो गया।

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