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आश्रम जैसी हिट सीरीज के बाद किसी दूसरे OTT प्लेटफॉर्म ने संपर्क नहीं किया? फिल्मकार प्रकाश झा

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार प्रकाश झा हाल के सालों में एक्टिंग में भी हाथ आजमा रहे हैं ।
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आश्रम जैसी हिट सीरीज के बाद किसी दूसरे OTT प्लेटफॉर्म ने संपर्क नहीं किया? फिल्मकार प्रकाश झा 

 Haryana tv24- सांड की आंख और जय गंगाजल जैसी फिल्मों के बाद अब बारी ' हाईवे नाइट्स ’ नाम की शॉर्ट फिल्म की है। इसमें प्रकाश झा एक ट्रक ड्राइवर के रोल में हैं।

यह प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई है। यह पिछले साल ऑस्कर की 'लाइव एक्शन शॉर्ट फिल्म’ कैटेगरी में चुनी भी गई थी। प्रकाश झा ने आने वाले प्रोजेक्ट और पिछली कुछ विषयों पर दैनिक भास्कर से बातचीत की है।

ट्रक ड्राइवर के रोल को निभाने के लिए कोई विशेष तैयारी की?
“जिस भी काम से मुझे आनंद मिलता है, उसे मैं पूरी तल्लीनता से करता हूं। वह फिर चाहे राइटिंग से लेकर म्यूजिक और एक्टिंग का सफर ही क्यों न हो। यहां मैं एक ट्रक ड्राइवर के रोल में हूं।

मेरे लिए बतौर एक्टर किसी भी किरदार की स्किन में जाने की प्रक्रिया से लेकर डायरेक्टर क्या कहना चाहते हैं, वह जानना बहुत जरूरी होता है। बाकी एक जमाने में मैंने ट्रक चलाया करता था। मैंने खलासी की नौकरी भी की है। मुझे ट्रक ड्राइवर की लाइफ का अंदाजा है। मेरे पास खुद का बस भी था।”

आश्रम जैसी हिट सीरीज के बाद किसी दूसरे OTT प्लेटफॉर्म ने संपर्क किया?
"जी नहीं। मेरे पास कोई नहीं आए। अमेजन या नेटफ्लिक्स वाले तो नहीं आए। जियो स्टूडियो जरूर आया। संकल्प नाम की सीरीज का एक सीजन कंप्लीट किया है। उस पर पोस्ट प्रोडक्शन चल रहा है। मैं अब आगे फीचर फिल्म शुरू करूंगा।"

आश्रम के अभी और कितने सीजन आएंगे?
"हमने एक और सीजन का शूट पूरा किया है, हालांकि वो स्ट्रीम नहीं हो पाया। MX प्लेयर का अभी कुछ मामला चल रहा है। यह सब करने के बाद इसके बाद ही अगले सीजन की तारीख आ जाएगी।"

धर्मगुरु वाले रोल के लिए बॉबी देओल को क्यों चुना?
"जब हम बाबा के रोल के लिए लोगों को ढूंढने लगे तो मेरे दिमाग में बॉबी देओल का ही नाम आया। हमें बॉबी के जैसे ही कोई इनोसेंट चेहरा वाला बंदा चाहिए था। उस रोल में बॉबी एक क्रेडिबिलिटी ला सकते थे। मैंने उनसे बात की तो वे तुरंत तैयार हो गए।"

सिनेमा और समाज में क्या संबंध होता है, इस पर कुछ कहना चाहेंगे?
"मैं तो अपने काम में लगा रहा हूं। क्या चेंज आया है या नहीं, वो मीडिया ज्यादा समझता है। ऐसा इसलिए क्योंकि मीडिया चौतरफा समाज को देखता है। वरना मैं तो अपने कामों में उलझा रहता हूं। बेहतर सिनेमा कैसे बनाता रहूं, उसमें लगा रहता हूं।

मैं फिल्म एकेडमिशियन नहीं हूं। तो इन बदलावों पर अथॉरिटी के साथ शायद बात नहीं कर पाऊं। बेशक समय के बदलाव के साथ साथ सिनेमा बदलता है। उसकी भाषा भी बदलती है।"

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